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Description: जैसे चींटियाँ लौटती हैं बिलों में / कठफोड़वा लौटता है काठ के पास / ओ मेरी भाषा! मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते अकड़ जाती है मेरी जीभ / दुखने लगती है मेरी आत्मा
-केदारनाथ सिंह

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2024年12月28日

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